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स॒ध्रीमा य॑न्ति॒ परि॒ बिभ्र॑तीः॒ पयो॑ वि॒श्वप्स्न्या॑य॒ प्र भ॑रन्त॒ भोज॑नम्। स॒मा॒नो अध्वा॑ प्र॒वता॑मनु॒ष्यदे॒ यस्ताकृ॑णोः प्रथ॒मं सास्यु॒क्थ्यः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sadhrīm ā yanti pari bibhratīḥ payo viśvapsnyāya pra bharanta bhojanam | samāno adhvā pravatām anuṣyade yas tākṛṇoḥ prathamaṁ sāsy ukthyaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒ध्री। ई॒म्। आ। य॒न्ति॒। परि॑। बिभ्र॑तीः। पयः॑। वि॒श्वऽप्स्न्या॑य। प्र। भ॒र॒न्त॒। भोज॑नम्। स॒मा॒नः। अध्वा॑। प्र॒ऽवता॑म्। अ॒नु॒ऽस्यदे॑। यः। ता। अकृ॑णोः। प्र॒थ॒मम्। सः। अ॒सि॒। उ॒क्थ्यः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:13» मन्त्र:2 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:10» मन्त्र:2 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर ईश्वर के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (सध्री) समान ठहरनेवाले (पयः) रस को (बिभ्रतीः) धारण किये हुए जल (अनुष्यदे) अनुकूलता से किञ्चित्-किञ्चित् झरने के लिये (विश्वप्स्न्याय) संसार की पालना के लिये (ईम्) सब ओर से (परि,आ,यन्ति) पर्याय से प्राप्त होते हैं (भोजनम्) पालना को (प्र, भरन्त) धारण करते जिन (प्रवताम्) जाते हुए जलों का (समानः) समान (अध्वा) मार्ग है (यः) जो (ता) उनको (प्रथमम्) उत्तम नियमवान् (अकृणोः) करते हैं (सः) वह आप (उक्थ्यः) प्रशंसा करने योग्य (असि) हैं ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो जल पवन के साथ चलता है, जिससे सबका पालन होता है, उसको सदा शोधो, जिससे आप लोग प्रशंसित हों ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरीश्वरविषयमाह।

अन्वय:

या सध्री पयो बिभ्रतीराप अनुष्यदे विश्वप्स्न्यायेम् पर्यायन्ति भोजनं प्रभरन्त यासां प्रवतां समानोऽध्वास्ति यस्ता प्रथममकृणोः स त्वमुक्थ्योऽसि ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सध्री) समानस्थानाः (ईम्) जलम् आ (यन्ति) समन्तात्प्राप्नुवन्ति (परि) सर्वतः (बिभ्रतीः) धरन्त्यः पोषयन्त्यः (पयः) रसम् (विश्वप्स्न्याय) विश्वस्य पालनाय (प्र) (भरन्त) भरन्ति (भोजनम्) पालनम् (समानः) तुल्यः (अध्वा) मार्गः (प्रवताम्) गच्छताम् (अनुष्यदे) आनुकूल्येन किञ्चित्प्रस्रवणाय (यः) (ता) तानि (अकृणोः) कुरु (प्रथमम्) (सः) (असि) (उक्थ्यः) प्रशंसितु योग्यः ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या यज्जलं वायुना सह चरति येन सर्वस्य पालनं जायते तत्सदा शोधयत यतो भवन्तः प्रशंसिताः स्युः ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जे जल वायूबरोबर वाहते, ज्याच्यामुळे सर्वांचे पालन होते, त्याला सदैव संस्कारित करा. त्यामुळे तुमची प्रशंसा होईल. ॥ २ ॥